Tuesday, 27 August 2013

''इंसान''


इंसान
नाम का प्राणी
कभी इस जग में रहता था,
किन्तु अब
डायनासोर की तरह
लुफ्त हो गया है.
किन्तु कुछ
अवशेष मिले है ...
इंसान के,
जिससे
ज्ञात होता है
कि कभी इस धरा पर
इंसान रहता था.
शायद हम तुम
सब आदमी
इंसान के
अवशेष है,
क्यूंकि इंसानियत
अब किसी में
न शेष है.
इन्सान और इंसानियत
इस मतलबी दुनिया में
केवल यादगार
अवशेष है..

''पत्थर''


पत्थरों को भी मैने पिघलते देखा है
उनमे से नदी की धार को बहते देखा है.
राहो के पत्थर बड़े मनहूस होते है
उन्हें मैने ठोकर खाते देखा है.
चट्टानों के पानी से टकराने पर
उन्हें भी चिकना बनते देखा.
पत्थरों को तराश कर
सुन्दरता में ढलते देखा....
पत्थरों की आदत है कष्टों को सहना
अब तक हमने किसी को भी आदत बदलते न देखा.
दिलो में तो दरारें पड़ती है मगर
मैने पत्थरों में भी दरारें पड़ते देखा.
बहुत लगाव था जिन्हें पहाड़ो से
उन्ही को चट्टानों पर फिसलकर लुढकते देखा.
खंडहरों और कंदराओं में
चमगादरों को शोर मचाते देखा है.
जुबान पर एक भी शब्द नहीं है कहने को
कि मैने किस किस तरह के पत्थरों को देखा हैं..

Thursday, 22 August 2013

       

 

 

 भोर ***

एक प्यार भरी मुस्कराहट 
किरण की पहली आहट 
खुशियों का दामन फैलाये
पूरब के होंठो पर लाली छाए
आसमां लाल बिंदी लगाये
धरती सुहागिन बन जाये
पक्षी मंगल गीत गाये..

न ज्यादा तपन न ठंडक
हर इक दिल में राहत आये
सभी के चेहरे जगमगाए
भंवरे गाये, फूल मुस्काये
गाय रम्भाये..

ऐसा रूप जब दिखे
आँखे तर्प्त हो जाये
गम के आंसू धरती के सूख जाए
और प्यारी सुबह
खुशियों का पैगाम लाय....

 अस्तित्व

  ''ओस की बूंद सा
  उसका महत्व
  दिन उगते ही समाप्त
 उसका अस्तित्व..''


(ये तस्वीर मेरे गाँव की ढाणी में लगे अनार के पौधे की है.)




मैं खड़ा हूँ सागर किनारे
मुझे नहीं मालूम
ये सागर रेत का है
या पानी का..

सागर से लहरें उठ
तट से टकरा कर
लौट जाती है
मेरी द्रष्टि पिघल जाती है..
दूर तक बस वही
फैला है एक सा
कहीं कहीं कुछ
हलचल सी दिखती है..

मैं ललचाया मीन सा 
ललचाई नजरों से
खड़ा तट पर
प्यास बुझाने को 
बढाता हूँ अंजुली.

हट जाते हैं पीछे कदम
तभी एक बड़ी सी लहर
मेरे चरणों से लिपट
धकेल देती है, मुझे सागर में..
हाथ-पांव बहुत मारे
निकल न पाया सागर से..

फिर भी ना प्यास बुझी मेरी
मुझे नहीं मालूम

वो सागर रेत का था, या पानी का..

Wednesday, 14 August 2013

 मेरे शब्दों में मेरी कविता..


कविता को लोग
कहते हैं कला
किन्तु क्या यह
दिलों का सूनापन नहीं
या किसी की
दर्द भरी आंहें नहीं..
कभी-कभी
लगता हैं  मुझे
खुशियों के लम्हे हैं कविता
किन्तु लोगो से कहते सुना
मन बहलाव का तरीका है कविता..
कुछ भी हो
आखिर मेरे दिल की
सच्ची कहानी है
मेरी कविता..!!